जान लो ‘तिल रखने की जगह न होना’ मुहावरे का अर्थ क्या है

आईटीआई के छात्र अब मुहावरे का सही अर्थ जान गए हैं

स्कूली परीक्षाओं में मुहावरों के अर्थ बताने के सवाल आते रहे हैं और पर्चे के जवाब देकर बाहर आते थे तो पिताजी की डांट भी खाते थे और अर्थ गलत करने का दुख भी होता था । इसलिए शिक्षण की अनेक विधियां डवलप भी हुई ताकि रटा रटाया जवाब की बजाए समझ पैदा हो सके। अलवर के प्रताप ऑडिटोरियम में आज जिले के आईटीआई छात्रों में इस मुहावरे को लेकर अच्छी समझ पैदा हुई। जिले में प्रत्येक ITI कॉलेज से छात्रों को यहां बुलाया गया था…. बुलाया भी इसलिए था कि विभाग के जो मंत्री हैं उनका स्वागत सम्मान करना था।

सीट की ऊपर-नीचे अगल-बगल सब भर गई

कहते हैं बूंद-बूंद से घड़ा भरता है… छात्रों की संख्या इतनी हो गई कि ऑडिटोरियम की क्षमता कम पड़ गई ।पहले तो काफी छात्रों को बाहर लॉन में बिठाया गया लेकिन बाद में मंत्री जी ने सभी को अंदर बैठने की इजाजत दे दी। फिर क्या हुआ सीट के ऊपर ही नहीं, सीट के अगल-बगल नीचे और गलियारों में सब जगह बच्चे बैठ गए। बच्चे इस तरह बैठे थे कि सचमुच ही तिल रखने की जगह नहीं थी। अब जिंदगी में कभी भी यह बच्चे ‘तिल रखने की जगह न होना’ मुहावरे का अर्थ गलत नहीं करेंगे।

मंच पर भी कमोबेश ऐसा ही

श्रोताओं की तरफ ही नहीं मंच पर भी ऐसे ही स्थिति थी। काफी संख्या में कुर्सिया लगाई गई थी और कुर्सियों के साथ ही खुद को महत्वपूर्ण दिखाने वाले लोग मंच पर खड़े हो गए थे। पिछली सरकार में बनकर तैयार हुए ऑडिटोरियम ने भी इतने बच्चों की आवाज एक साथ पहली बार सुनी थी।

ऑडिटोरियम के कर्मचारी परेशान

इस हालात को देखकर कर्मचाारी परेशान हो गये लेकिन मंत्री जी के मनमाफिक काम हो रहा था तो खुश थे। बच्चे हर शब्द पर तालियां पीट रहे थे और ऐसा लग रहा था कि घर्षण से पैदा हो रही बिजली से पूरा हॉल जगमग है। यूं तो फोटो देखकर ही समझ आ जायेगा लेकिन  मोबाइल की क्रान्ति की कहानी भी सुन लो। जितने बच्चे थे उनसे दोगुने हाथ थे और मोबाइल भी कम नजर नहीं आ रहे थे। धमाधम फोटोज चलती रही। 

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