अलवर पुर्वांचल विकास सेवा समिति के तत्वाधान में मनाया जा रहा छठ पर्व
आज छठ पर्व के तीसरे दिन जिसे संध्या अर्घ्य के नाम से जाना जाता है। अलवर में सागर तालाब के किनारे सभी पुर्वांचल निवासियों ने परिजनों के साथ मिलकर पूजा की तैयारिया की। छठ पूजा के लिए विशेष प्रसाद जैसे ठेकुआ, कचवनिया चावल के लड्डू बनाए गए। छठ पूजा के लिए एक बांस की बनी हुयी टोकरी जिसे दउरा कहते है में पूजा के प्रसाद, फल डालकर देवकारी में रख कर पूजा की गई। वहीं पूजा अर्चना करने के बाद शाम को एक सूप में नारियल, पांच प्रकार के फल और पूजा का अन्य सामान लेकर दउरा में रख कर घर का पुरुष अपने हाथों से उठाकर छठ घाट पर ले गया। इस पर्व मे पवित्रता का खास ध्यान रखा जाता है। इस संपूर्ण आयोजन में महिलायें छठ मैया के गीतों को गाते हुए घाट की ओर जाती हैं।
कल उगते सूर्य को दिया जायेगा अर्घ्य
नदी के किनारे छठ माता का चौरा बनाकर उस पर पूजा का सारा सामान रखकर नारियल अर्पित किया जाता है। एवं दीप प्रज्वलित किया जाता है। सूर्यास्त से कुछ समय पहले, पूजा का सारा सामान लेकर घुटने तक पानी के अन्दर खड़े होकर, डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर पांच बार परिक्रमा की जाती है चौथे दिन सुबह उदियमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। सूर्योदय से पहले ही व्रती-जन घाट पर उगते सूर्यदेव की पूजा हेतु सभी परिजनो के साथ पहुँचते हैं।
पूर्वांचल विकास सेवा समिति करती है आयोजन
संध्या अर्घ्य में अर्पित पकवानों को नए पकवानों से प्रतिस्थापित कर दिया जाता है, परन्तु कन्द, मूल, फलादि वहीं रहते हैं। सभी नियम-विधान सांध्य अर्घ्य के समान ही किए जाते हैं। पूजा-अर्चना समाप्तोपरान्त घाट के पूजन का विधान है। अलवर में आयोजित हो रहे पूजा कार्यक्रम खास तौर पर पूर्वांचल विकास सेवा समिति के अध्यक्ष लक्षमेश कुमार सिंह, संजय सिंह, सुशील कुमार सिंह, दीपक मिश्रा, मदन झा, अजित झा द्वारा व्यवस्था की गई हैं।
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