सरिस्का पर संकट के बादल

सरिस्का खत्म हो रहा है, वन विभाग बंशी बजा रहा है

सरिस्का में 2005 में बाघों का सफाया हुआ था। तो देश दुनिया में शिकारियों को खूब कोसा गया था। जांच में कई शिकारी धरे गए ,कोर्ट ने उन्हें सजा भी सुनाई और कईयों की तो सुनवाई के दौरान ही मौत भी हो गई। लेकिन सरकार के साथ ही वन्यजीव प्रेमियों ने सरिस्का को आबाद करने की कोशिश शुरू की। वन विभाग ने अच्छे अधिकारियों की तैनातगी की और सरिस्का में बाघों का कुनबा बढ़ने लगा। लेकिन एक बार फिर से अब सरिस्का पर काले बादल हैं ।  एक बाघ की मौत हो चुकी है और दूसरी बाघिन लापता है ।


अलवर राजघराने से था सरिस्का का सम्बन्ध,सिरस्का कहते थे

अलवर राज घराने की ओर से सरिस्का को शिकार के लिए उपयोग किया जाता था लेकिन तब भी आम लोगों को शिकार करने पर मनाही थी। भारत की आजादी के बाद साल 1955 में इसे अभ्यारण्य बना दिया गया। देश के प्रसिद्ध राष्ट्रीय उद्यानों में से एक सरिस्का पहले सिर्फ 866 वर्ग किलोमीटर में था लेकिन वर्तमान में 1200 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा इलाका सरिस्का के अंतर्गत आता है। 2005 में शिकारियों द्वारा सरिस्का को बाघ विहीन कर दिया गया तो 2008 में एक बार फिर से बाघ पुनर्वास कार्यक्रम शुरू किया गया और यहां बाघों की संख्या 15 तक पहुंच गई। जो उम्मीद से कहीं अच्छा चल रहा था। 


पहले बाघ को जहर दे दिया गया था

2010 में बाघ ST 1 को जहर देकर यहीं के ग्रामीणों ने मार डाला। परेशानी थी कि पालतू पशुओं को बाघ अपना शिकार बना लेता था। यह वही ग्रामीण हैं जिनसे सरकारें और वन विभाग लगातार विस्थापित होने की मिन्नतें करते रहे हैं लेकिन सरकारी लापरवाही और उचित मुआवजा नहीं मिलने के चलते सरिस्का का आरामदायक जीवन नहीं छोड़ना चाहते। सरिस्का पर सबसे बड़ी गाज 19 मार्च को गिरी जब पिछले 3 सप्ताह से सरिस्का के कर्मचारी और अधिकारी बाघिन ST 5 को कंदरा-कंदरा तलाश रहे थे तो उनके पास बाघ ST 11 की मौत की खबर आई। उस वक्त प्रदेश के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जी वी रेड्डी सरिस्का के ऑफिस में अधिकारियों की बैठक ले रहे थे और कुछ ही किलोमीटर पर बाघ का शिकार कर दिया गया था।


एसटी 5 की हत्या का आरोपी खुद हुआ वन विभाग के हवाले

खास बात यह कि एसटी 5 की हत्या के आरोपी को किसी ने नहीं पकड़ा, आरोपी खुद चलकर आया और कहा कि बाघ पहाड़ की तलहटी में पड़ा है और मर चुका है। बाघ को मारने के लिए एक फंदा बनाया गया था।पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार दम टूटने के कारण बाघ की मौत हुई। जो पोस्टमार्टम से करीब 16 से 20 घंटे पहले मर चुका था। बाघ ST 11 का अंतिम बार सिग्नल 19 मार्च को ही दिन में 11 बजे कुशालगढ़ के पास मिला था। कई दिन बीत जाने के बाद भी ना राज्य सरकार ने इसमें गंभीरता दिखाई और ना ही केंद्र सरकार के किसी नुमाइंदे का कोई बयान ही आया। स्थानीय अधिकारी किसी तरह मामले में लीपा पोती कर रहे हैं।

आरोपी भगवान सहाय प्रजापत

2010 में सरकार ने दिखाई थी तत्परता
2010 में ST 1 की मौत के बाद खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरिस्का आए थे। केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश तो घटनास्थल पर भी पहुंचे और सरिस्का में सुधार के लिए कई घोषणाएं की। यह सच है कि घोषणाएं आज तक अधूरी हैं। लेकिन सरिस्का के प्रति सरकार की गंभीरता नजर आई थी। वर्तमान में अधिकारी स्टाफ और सुविधाएं नहीं होने का रोना रो रहे हैं। राजनीतिक हस्तक्षेप है उसके चलते भी सख्ती से नियमों को लागू करना संभव नजर नहीं आता। 

वन मंत्री और विभागीय अधिकारी लापरवाह

पिछले 6 माह से अकबरपुर रेंज को दो हिस्सों में बांटने के लिए पत्र व्यवहार चल रहा है। लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। सरिस्का में दूसरे डीएफओ की तैनातगी होनी थी जो हो गई। लेकिन उन्हें सिर्फ विस्थापन का काम दिया गया और सरिस्का को दो हिस्सों में नहीं बांटा गया। सरिस्का के कोर एरिया में 2 दर्जन से ज्यादा गांव हैं और मुख्य सड़क जो कोर एरिया का ही हिस्सा है। वहां जमकर व्यावसायिक गतिविधियां हो रही है। एनटीसीए के मापदंडों के अनुसार सरिस्का में मॉनिटरिंग करने की बात कही जा रही है। जो अब तक हो जानी चाहिए थी। हर 2 वर्ग किलोमीटर में कैमरा लगाना शुरु किया है लेकिन काम कब खत्म होगा कह नहीं सकते। सरिस्का में हर बीट में तीन लोगों की ड्यूटी लगाना जरूरी है लेकिन अभी 103 बीटों में सिर्फ 108 लोग काम कर रहे हैं। उनमें से भी कुछ बीटगार्ड अपने अधिकारियों की जी हुजूरी करने में लगे हैं। उनके निवास पर कुत्ता घुमाने से लेकर खाना बनाने तक का काम कर रहे हैं। पीओपी से बाघों के पग मार्क लेने की पद्धति को पूरी तरह बंद कर दिया गया है। जिसे लेकर अब पत्र लिखे जा रहे हैं कि किसके आदेश पर यह बंद किया गया था ।मॉनिटरिंग का काम डब्लूूूआईआई की टीम कर  रही है जो बार-बार यह बयान दे चुकी है कि  मॉनिटरिंग करना उसकी जिम्मेदारी नहीं है। 

सरिस्का में सूचना तंत्र फेल है, अंतिम जिम्मेदारी सरकार की

जहां बाघ ST 11 का शिकार किया गया वहीं इंदौक गांव है और सरिस्का में पर्यटकों के लिए लगी गाड़ियां सबसे ज्यादा इंदौक गांव की ही हैं। लेकिन बावजूद उसके सरिस्का के अधिकारियों का सूचना तंत्र पूरी तरह फेल है। अधिकारी यह तो स्वीकार करते हैं कि लापरवाही हुई है और बाघिन ST 5 के साथ भी कुछ भी हो सकता है। लेकिन बाकी बचे बाघों को कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है इसको लेकर भी उनके पास प्लान नहीं है। वह ग्रामीणों, राजनीतिक दबाव, मारपीट की घटनाओं, विस्थापन और घने जंगल की समस्याओं को ही गिनाकर नहीं अघाते हैं। वन्यजीव प्रेमी तो यहां तक आरोप लगाते हैं सरिस्का में कमीशनबाजी का खेल चल रहा है इसी कारण कर्मचारियों और अधिकारियों में तनातनी है और जंगल असुरक्षित हो गया है। सरिस्का में काम कर रहे काफी लोग रणथम्भौर की होटल और पर्यटन लॉबी को भी इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। लेकिन इस राष्ट्रीय अभ्यारण को और बाघ को बचाने की अंतिम जिम्मेदारी सरकार की है। समय रहते सख्त कदम नहीं उठाए गए तो परिणाम भयावह हो सकते हैं।

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