रेजांगला युद्ध – आखिरी सांस, आखिरी गोली

If Ladakh is a part of this country today, it is because of the Veer Ahirs who fought to the ‘last man, last round’ at Rezang La (Chushul) on November 18, 1962.

अहीरवाल के वीरों ने लद्दाख को बचाने में दी थी जान की आहूतियाँ

सियाचीन और पीओके नाम के शब्द आज भी हमें सुनने में तकलीफदेह हैं। लेकिन आपको मालूम है कि लद्दाख सियाचीन का हिस्सा नहीं है तो उसका कारण क्या है। हम बताते हैं आपको- 
55 साल पहले आज ही के दिन लद्दाख की चुसुल घाटी रेजांगला में भारत की चार्ली कम्पनी के जवान तैनात थे जो 13 कुमाऊं रेजिमेन्ट के थे। 17 नवम्बर की रात बर्फिली थी और ठण्डी हवाओं के साथ बर्फबारी भी हो रही थी। 18 नवम्बर की सुबह जब सूरज दस्तक देने को था तो हिन्दी-चीनी भाई-भाई के नारे का लबादा उतारकर चीनियों ने पूरी तैयारी के साथ हमला कर दिया। कम्पनी को लीड कर रहे थे जोधपुर के रहने वाले मेजर शैतानसिंह। सूरज निकलने तक युद्ध में साफ स्थितियां नहीं दिख पा रही थी लेकिन अलग अलग प्लाटून को निशाना बना रहे चीनियों के हमले को भारतीय जवानों ने असफल कर दिया था। चीनी सैनिकों के पास आधुनिकतम हथियार थे और भारतीय आर्टिलरी अपने सैनिकों तक मदद पहुँचाने में अक्षम थी। लेकिन उस 18 नवम्बर की सुबह 120 जवानों ने साहस और शौर्य की नई ईबारत लिख दी। दुश्मन की आहट पर ही मैजर शैतानसिंह ने जवानों से मौर्चा छोड़ने की बात पूछी थी लेकिन जवानों ने आखिरी सांस तक युद्ध करने की ठान ली थी। ये अन्तिम राउण्ड-अन्तिम व्यक्ति की लड़ाई थी।

हर एक सैनिक ने दस चीनियों को मारा

चीन के 1300 सैनिक मारे गये थे और 13 कुमाऊं रेजिमेन्ट की चार्ली कम्पनी के 114 जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे। पांच को चीनी सैनिकों ने बन्दी बना लिया था और 21 नवम्बर को चीनी सेना के सीज फायर के बाद मौके पर स्थिति सामान्य हो सकी। जब शहीदों के शवों को ढूंढा गया तो उनकी उंगलियां ट्रिगर पर थी। हर एक सैनिक के सीने पर ही गोलियों के जख्म थे। खास बात ये कि चीनी सैनिकों से शवों से रेजांगला पट गया था। 16000 फिट की उंचाई पर मैदानी इलाकों के लड़ाकों ने चीनियों के छक्के छुड़ाये थे।

अहीरवाल के वीर अहीर

13 कुमाऊं रेजिमेन्ट में सबसे ज्यादा सैनिक अहीरवाल से थे जिनमें हरियाणा के रेवाड़ी,महेन्द्रगढ़ और राजस्थान के अलवर और झुन्झुनु के रहने वाले अहीर (यादव) थे। 120 जवानों में से 114 वीर गति को प्राप्त हुए थे और जो बचे वो बुरी तरह घायल थे। इस दौरान चीन के 1300 सैनिकों को मार गिराया गया था। दुश्मन चीन की सेना रेजांगला के जवानों की वीरता की कद्रदान रही और लिखा कि चीन को सबसे ज्यादा नुकसान रेजांगला में उठाना पड़ा। 

युद्ध का सर्वोच्च सम्मान दिया गया

मेजर शैतान सिंह को बहादुरी,समर्पण और नेतृत्व के लिए परमवीर चक्र से नवाजा गया था। इसी के साथ कम्पनी को 5 वीर चक्र और 4 सेना मैडल भी दिये गये। जहां इन शहीदों को अन्तिम विदाई दी गई वहां एक स्मारक बनाया गया है और हर एक वीर जवान का नाम अंकित है। जवानों ने हथियारों के कमी होने के कारण रायफल का उपयोग लठ्ठ की तरह किया था चाकू और पत्थरों से लड़ाई लड़ी गई थी। जवान सिंहराम पहलवान था और हथियार नहीं होने के कारण चीनी सैनिकों के सिर पकड़कर या तो आपस में टकरा दिये थे या चट्टान से लगाकर तोड़ दिये थे। 


वीर-अहीर रेजिमेन्ट

देशभर में यादव रेजिमेन्ट बनाने की मांग काफी समय से चल रही है लेकिन 13 कुमाऊँ रेजिमेन्ट को आज भी वीर अहीर रेजिमेन्ट कहा जाता है जो  रेजांगला कहलाने में भी अपनी वीरता पर गर्व करती है। हालांकि कई शोध और रिसर्चर्स ने रेजांगला की शौर्य कहानी को स्कूली पाठ्यक्रम में लागू करने की सिफारिश भी की है।  रेवाड़ी में रेजांगला स्मारक,जोधपुर में मेजर शैतानसिंह का स्मारक और देश के दूसरे कई हिस्सों में भी स्मारकों का निर्माण हुआ है।

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