by prakash chand beniwal
1995 में पहली बार मनाया गया था अलवर उत्सव
अलवर को देश के ट्यूरिज्म नक्शे पर लाने के लिए ये प्रयास शुरु किया गया था जिसमें यहां के साहित्यकारों का बड़ा योगदान रहा है। देशी-विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए 1995 में 30 मार्च को अलवर उत्सव मनाया गया था। तत्कालीन जिला कलक्टर मनोहर कान्त ने जिले के सभी दर्शनीय स्थलों की जानकारी एकत्र करने के निर्देश मातहतों को दिये थे।
30 मार्च को होता रहा है राजस्थान दिवस
अलवर उत्सव भी 30 मार्च को ही करने का फैसला अधिकारियों की एक बैठक में किया गया था जिसमें अलवर उत्सव के नाम से एक आकर्षक आयोजन तय किया गया। पर्यटन विभाग को भी शामिल करने समेत कई फैसले हुए और विभिन्न विभागों को जिम्मेदारी दी गई। वक्त के साथ तारीख और समय बदलता गया। फरवरी माह में भी अलवर उत्सव का आयोजन हुआ या यूँ कहें कि प्रशासन अपनी मर्जी से उस आयोजन को करने लगा। लेकिन सबसे बड़ी बात ये कि शहर में एक अच्छी परम्परा की नींव पड़ गई थी। ये अखबार मार्च 1995 का है जिसके बाद पैदा होने वाले लड़कों की शादी की उम्र हो गई है। खास उन्हीं के लिए अखबार की कतरन निकाली गई है। जो मोबाइल के जमाने में आ गये, जन्म के समय का अखबार ऐसा होता था।
अलवर उत्सव से हो गया मत्स्य उत्सव
2002 के बाद अलवर उत्सव को राजस्थान के पर्यटन कलेण्डर में जगह मिली। 2005 के बाद इसे मत्स्य उत्सव के नाम से मनाया जाने लगा। जिला प्रशासन और पर्यटन विभाग देशी विदेशी पर्यटकों को बढ़ाने की कवायद में जुटे थे इसी लिए उत्सव का समय बदलकर नवम्बर माह में कर दिया गया। इसके पीछे कई और भी तर्क दिये गये थे लेकिन 2011 में तत्कालीन जिला कलक्टर ने मत्स्य उत्सव को आमजन तक पहुँचाया और यादगार कार्यक्रमों का आयोजन शुरु हुआ।
शोभायात्रा, रंगोली, सांस्कृतिक और वाटर स्पोर्टस
ऊपर लिखे इन चार कार्यक्रमों पर ही मत्स्य उत्सव का आयोजन टिका है। पेंटिंग के माध्यम से बच्चों, मेहन्दी के माध्यम से महिलाओं को जोड़ने का प्रयास हुआ है। संगीत और साहित्य के माध्यम से कार्यक्रम में चार चांद लगाने की कोशीश रहती है लेकिन पर्यटकों को अलवर लाने के उद्देश्य से शुरु हुआ कार्यक्रम अभी परिणाम को भटक रहा है। 1995 में शुरू किया गया ये कार्यक्रम अब अलवर की पहचान बन चुका है।
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